संपादकीय

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– नीतीश मौर्या

गर्मी का मौसम था, कैम्पस में छुट्टियाँ चल रही थी और मैं घर पर वातानुकूलित का आनंद ले रहा था | अब ऐसी स्थिति में यदि बाधा आ जाये तो कैसा लगता है वो आप सबको पता है | खैर दोपहर को पापा का कॉल आता है और मुझे  मम्मी से खबर मिलती है की मुझे पापा के साथ आधे घंटे में बाहर जाना है | भाईसाब आप ज्येठ की दुपहरिया में बाहर नहीं निकलना चाहते मगर किस्मत ही ऐसी हो तो कुछ किया नहीं जा सकता | मैं मन मार कर चुप चाप तैयार हो गया | सरकारी गाडी लेने वाली थी हमे और सरकारी ड्राईवर भी हमारे लिए भेजा गया था | कुछ देर में पापा भी आ गए और खाने पर बैठ गए|

जिस रास्ते पे हमें जाना था वो बहुत ही खराब था, सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे और उस पर से गुजरने वालो की रूह तक काँप जाती है | इस वजह से सिर्फ 10 किमी का सफ़र भी आप एक घंटे में कर पाते है | खैर हमे तो जाना था और सड़क की हालत सोच कर मेरे सर में चक्कर आ रहा था |

कुछ देर में एक गाड़ी दरवाजे के सामने खड़ी थी | नीले रंग की महिंद्रा जीप, उस पर भी पेंट ख़राब हो रहा था और सामने एक पट्टे पर लिखा था “भारत सरकार” | गाडी से ड्राईवर साहब उतरे [धुम्रपान के साथ] और उनका लिबास तो माशाल्लाह – सर पे छोटे छोटे बाल, गन्दी सी कमीज़ और पैंट तथा पैरों में चप्पल | ड्राईवर साहब पास के गाँव से थे और कोई ख़ास तालीम हासिल नहीं थी | मुश्किल से पांचवी पास थे | ड्राईवर साहब को भी खाना खिलाया गया और फिर हम लोग सफ़र पर निकल गए |

जैसा की पहले बताया की रास्ता बहुत ख़राब था सो हम उछल रहे थे और ड्राईवर साहब सरकार को गालियाँ बक रहे थे ” …ये हमारा एम.पी. और एम.एल.ए. कोई काम का नहीं है, बस वोट चाहिए, उस एम.एल.ए. ने ही इस रोड का ठेका लिया है और उस …” ऐसे कुछ शब्द बोले जा रहे थे | मै पीछे वाली सीट पर सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद कहा आये | जैसे तैसे एक घंटा बीत गया और हम उस सड़क को छोड़ कर अच्छी सड़क पर आ गए थे जो कि बिहार राज्य में था | अब उस रास्ते पर ड्राईवर साहब ने क्या खूब गाड़ी चलायी और बिहार की प्रशंसा करने लगे |

हम लोग खेत के बगल से गुज़र रहे थे जहा बिजली के खम्भे खेतों के बीच से होते हुए जा रहे थे | ड्राईवर साहब ने बताया की यहाँ एक जादुई खम्भा  है जो खुद ब खुद आगे पीछे होता है | [मैं हैरान था उसके भोलेपन पर]

दरअसल खम्भा थोड़ा टेढ़ा था, इसलिए जब आप खम्भे के सामने होते है तो वो आपको आपकी तरफ झुका हुआ दिखेगा, खम्भे के बगल से गुजरने पर सीधा दिखेगा और खम्भे को पीछे छोड़ने पर फिर से हमारी तरफ झुकता हुआ नज़र आएगा | आँखों का दोष था और लोग अज्ञानता में जादुई समझ रहे थे | हमने ड्राईवर साब को समझाया और मुझे नहीं पता कि उसे कितना समझ में आया पर मुझे इतना पता था कि वो दुखी था क्योंकि जिसे वो चमत्कार मान रहा था वह बस एक धोखा है और यही बात उसे नहीं जंच रही थी| एक अनपढ़ इंसान को क्या समझाया जाये, वो उल्टा हमें ही मूर्ख समझेगा |

मेरा मानना है कि इंसान दो तरह से ज्ञान हासिल करता है, पहला व्यावहारिक और दूसरा सैद्धांतिक (अनुमानित) | या स्पष्ट शब्दों में “जान कर” अथवा “मान कर” | जानने और मानने में बहुत फर्क है और इन दोनों के बीच “समझ” का विशाल पहाड़ होता है | हमारे समाज में बहुत सी बातें मानी हुई चली आ रही है और बहुत सी बातें लोग अपने जीवन काल में समझ कर जान लेते है | इसी सन्दर्भ में एक सीधा सवाल है : क्या आप भगवान को जानते है या मानते है ? है ना मज़े की बात , कितने लोग हैं जो ऊपर वाले को जानते है ? और कितने ही सारे लोग है जो सिर्फ मानते है |

अब जानना और मानना आपके हाथ में है | हम आज विद्या हासिल कर रहे हैं ताकि हम सच को जान सके और अज्ञानता से दूर हो सके | मानना अन्धो का काम है, आपका नहीं| आँखे खोलिए, बातों को समझिये और जानिये सच्चाई को | खैर मैंने शायद ज्यादा बोल दिया और इसी के साथ मैं आप सब को “हिंदी दिवस” पर हमारी “हिंदी : फिफ्थ स्टेट” का ऑनलाइन संस्करण प्रस्तुत करता हूँ और आप सभी पाठकों से उम्मीद है की आप के अनेक विचार और परामर्श हमारा मार्गदर्शन करेंगे और आपके कई अच्छे-अच्छे गद्य एवं पद्य इस संस्करण की शोभा बढ़ाएंगे | बस आपसब से यही उम्मीद है की आप हिंदी और भारतीय समाज के मूल तत्वों के महत्व को जानिये और न कि नेत्रविहीन हो कर मानिये | “हिंदी : फिफ्थ स्टेट” इसी संकल्प को साथ लेकर आगे बढेगा | हमारी छोटी सी टीम हर हफ्ते आप के लिए कविता और पद्य लाएगी और हमें उम्मीद है कि आपके उत्तम सांस्कृतिक समझ में थोड़ी सी भागीदारी हमारी भी होगी |

धन्यवाद,
जय हिंद, जय भारत

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