कुदरत का कानून

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कुदरत का कानून (उत्तराखंड)

 

जब लहर उठी उस पर्वत से,  तो चारों तरफ विनाश हुआ
था रूप भयंकर कुदरत का,  सब लोगों को एहसास हुआ !

ना सुनी रुदन और चीख-पुकार, बन पिशाच तांडव जब शुरू हुआ
नहीं किया भेद जीव-जंतु और मनुष्यों मे, कुदरत का कानून जब शुरू हुआ !

हर शख्स नींद मे सो गया था जब,  कुदरत के साथ अनाचार हुआ
कर खनन-खनन उन खनिजों का,  ईमारत और सडकों का विस्तार हुआ !

ना  पूछा सुन्दर नगरी को जब,  स्वर्ग से नरक बना दिया
अब पूछ रहे हो केदारनाथ,  क्यूँ ? ऐसा अत्याचार किया !

जब कुदरत ने अपना कहर दिखाया,  उत्तराखंड का ऐसा मंजर था
हर पर्वत चकनाचूर हो गए,  लाशों से भरा समंदर था !

कुदरत का कानून जीत गया,  केदारनाथ मे सब कुछ बीत गया
उत्तराखंड की उस बारिश मे,  हर बच्चा-बूढा शीत गया !

हर बच्चा-बच्चा पूछ रहा था,  माँ-पापा घर कब जायेंगे ?
भूख लगी है खाना ला दो,  यहाँ वापिस कभी न आयेंगे !

कोई बयां नहीं कर पाता है, उन सुनसान अँधेरी रातों को
जहाँ कौए-कुत्ते नोच रहे थे, सड़ी गली उन लाशों को !

ना करो छेड़छाड़ कुदरत से, जो भूल हुई उसे माफ़ करो
और कुदरत से इन्साफ करो, इन्साफ करो इन्साफ करो !!

-महेश मीणा

 

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