इस समंदर मे इक लहर आने तो दो
इस थमी हवा मे इक हलचल होने तो दो
दिल की धड़कने गुनगुनाने लगी है कब से
इन आँखों को वो बात अब जताने तो दो
अँधेरा भी चांदनी का साथ छोड़ चुका है कब से
सूरज की लाली को अब छाने तो दो
बहुत रो लिया आज की फिकर मे
कल की यादों मे अब खो जाने तो दो
राख की ढेरी मे दबी है बेताबी मेरी
कोई एक चिन्गारी अब लगाने तो दो
ठिठुर रही है साँसे इंतजार मे उसके
बस प्यार की अलाव अब जलाने तो दो
इस चाँद का नूर फीका पड़ जाएगा
उसकी एक झलक इस रात को पाने तो दो
कब से सजा है लबों पे नाम उसका
बस एक तारा अब टूट जाने तो दो
– शंकर शर्मा