क्रांति : कल और आज

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– नीतीश कुमार


सत्याग्रह चल रहा मंद-मंद ,
धर्य हो रहा खंड-खंड ।
फिरंगी की आंखे मूँद-मूँद ,
आरम्भ हो क्रांति बूँद-बूँद ।।
उठ खड़े हुए शूरवीर
तितर बितर थे उनके धीर ।
मातृ भावों से हो गंभीर
तोड़ने चले गुलामी की ज़ंजीर ।।
बूढा भारत फिर हुआ तरुण
जोशीले क्रांतिकारी इसके निपुण ।
साथ लेकर गोला हथियार
सटीक हो रहे उनके वार ।।
धर्य धीन धारण धान
तरनी तरन तीर तमंचा तान ।
फांसी के फंदे में उनकी शान
मान गए उनका स्वाभिमान ।।
समय बदला, देश बना आज़ाद
कृतज्ञ मिटटी ने उनको किया याद ।
त्याग और देशभक्ति से हम हुए आज़ाद
क्या अब भी है हम में वो बात ?
सालो उपरांत ये कैसी प्रगति !
भूल गए हम उनकी हस्ती ।
कार्यालयों में छुट्टियां मनती है
शायद कोई वीर जयंती है !!
पंगु हो चूका लोकतंत्र है
जंग लग चूका गणतंत्र है ।
न्याय की आस दूरस्त
भ्रष्टचारी  हो चुके समस्त ।।
घुल रहा नफ़रत का ज़हर
नहीं महफूज़ कोई शहर ।
मर रही बेटी, मर रहा किसान
क्या तुमको है इसका ध्यान ?
मेरी पीढी !  तुम सो रहे अबतक !
बाहर क्रांति दे रहा दस्तक ।
जलाओ मशाल, करो स्वागत
लड़ो वीरों, जां है जबतक !!













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